भारत में भूमि में निवेश एक अच्छा निवेश निर्णय हो सकता है। आमतौर पर भूमि में निवेश किया गया धन बहुत अधिक होता है और कभी कभी तो सारे जीवन की जमापूंजी होती है,अतः बहुत ही सावधानी की आवश्यकता होती है। जब हम कोई घर, प्लाट, कृषि भूमि या व्यावसायिक भूमि खरीदते हैं तो इसके क़ानूनी रूप से वैध होने के लिए इंडियन रजिस्ट्रेशन एक्ट 1908 के अनुसार इसका रजिस्ट्रेशन करवाना भी आवश्यक होता है। प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन एक जटिल प्रक्रिया है। रजिस्ट्रेशन का कार्य संबंधित सब रजिस्ट्रार के कार्यालय द्वारा किया जाता है। यदि हमें रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया की मूलभूत जानकारी हो तो अनवांछित परेशानियों से बचा जा सकता है तथा समय की बचत की जा सकती है। ।आज की पोस्ट में हम प्रॉपर्टी खरीदने व रजिस्ट्रेशन के दौरान ध्यान रखी जाने वाली कुछ आवश्यक बातों के बारें में उल्लेख करेंगे।
1. भूमि के क़ानूनी दस्तावेज़
किसी भी जमीन या प्लाट को खरीदने से पहले उसके क़ानूनी दस्तावेज को मूल रूप में देखना व फिर उनकी सत्यता की जाँच की जानी आवश्यक है। स्थान विशेष के अनुसार निम्नलिखित क़ानूनी दस्तावेज हो सकते हैं।
टाइटल डीड टाइटल डीड एक रजिस्टर्ड सेल डीड किसी भी जमीन की मालिकाना हक़ का क़ानूनी प्रूफ है। सेल डीड के अतिरिक्त इन्तेकाल /जमाबंदी आदि भी क़ानूनी दस्तावेज होते है जो मलकियत को दर्शाते हैं। अतः इन दस्तावेजों को मूल रूप में देखना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए की भूमि विक्रेता का नाम इनमे है।
टैक्स रसीदें अलग अलग स्थान के अनुसार भूमि पर विभिन्न प्रकार के टैक्स होते है जिसकी जाँच कर लेनी चाहिए की कुछ बकाया तो नहीं है जैसे Encumbrance certificate एन्कम्ब्रन्स सर्टिफिकेट, प्रॉपर्टी टैक्स , सुविधा शुल्क इत्यादि ।
ऋण जाँच आपको भूमि खरीदने से पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए की विक्रेता द्वारा भूमि पर कोई ऋण /लोन /गिरवी आदि तो नहीं है और यदि है तो ऋण का भुगतान करके बैंक या संस्था से अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिया है
2. CLU(Conversion and Land Use) एवम निर्माण अप्रूवल्स
आप जिस भूमि को खरीदने जा रहें हैं उसके बारे में आपको जानकारी होनी चाहिए की यह लोकल अथॉरिटीज द्वारा किस प्रकार की भूमि की श्रेणी में है, क्या इस पर निर्माण किया जा सकता है।
3. लोकेशन एवं भूमि के रेट
लोकेशन एवं भूमि के रेट भूमि की लोकेशन बहुम अहम् होती है आप प्लाट या जमीन को निवेश के उद्देश्य से क्रय कर रहे है या अपने प्रयोग के लिए दोनों ही अवस्थाओं में भूमि/प्लाट किस जगह /लोकेशन पर है यह मायने रखता है। भूमि को खरीदने से पहले जा कर निरीक्षण करें कि भूमि अच्छी स्थिति में है या नहीं भूमि के माप की जाँच कर लें तथा विक्रेता के बारें में जानकारी प्राप्त करे । लोकेशन के अनुसार ही जमीन के रेट्स निर्धारित होतें है। जगह की यातायात से कनेक्टिविटी वातावरण सुगम्य हो। तथा पुनः बिक्री करना आसान हो। क्षेत्र के सम्पति बाजार में सम्पति मूल्यों का अवलोकन करने के बाद ही निर्णय लेना चाहिए कि जो कीमत आप दे रहें वह उचित है या नहीं।
4. रजिस्ट्रेशन के दस्तावेजों तैयार करना
क्रय की जाने वाली भूमि के मालिक के दस्तावेजों, भूमि के रेट, लोकेशन व अन्य आवश्यक बातों की की जाँच करने के बाद सेल डीड या विक्रय प्रलेख द्वारा भूमि का हस्तांतरण किया जाता है। किसी भी प्रकार की परेशानी से बचने के लिए इसके लिए किसी विशेषज्ञ से परामर्श के बाद डीड को तैयार करवाना चाहिए। यह गैर न्यायिक स्टाम्प पेपर पर लिखा जाता है। विक्रय विलेख पर दोनों पक्षों के तथा गवाह के हस्ताक्षर आवश्यक हैं। विक्रय प्रलेख के अतिरिक्त रजिस्ट्रेशन के लिए निम्नलिखित अन्य दस्तावेज़ भी तैयार करें।
दोनों पक्षों के पहचान पत्र आधार कार्ड /वोटर कार्ड
दोनों पक्षों के पैन कार्ड
विक्रय विलेख प्रतियों सहित
नया प्रॉपर्टी कार्ड
नगर पालिका No Dues Certificate
अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC)
स्टाम्प शुल्क व् रजिस्ट्रेशन शुल्क की भुगतान रशीद
पावर ऑफ़ अटॉर्नी (यदी आवश्यक हो तो )
5. सब-रजिस्ट्रार कार्यालय में संपर्क
उपरोक्त दस्तावेज़ पूर्ण करने के बाद दोनों पक्षों को सम्बंधित क्षेत्र के सब रजिस्ट्रार कार्यालय में संपर्क करना चाहिए। भारतीय रजिस्ट्रेशन एक्ट 1908 के अनुसार प्रलेख एक्सेक्यूटे होने के चार महीने तक इसका रजिस्ट्रेशन करवाना आवश्यक है। देरी की स्थिति में आपको सब- रजिस्ट्रार को आवेदन करना होगा। यदि सब - रजिस्ट्रार सहमत हो तो जुर्माने के साथ रजिस्ट्रेशन किया जा सकता है। सब रजिस्ट्रार कार्यालय में अपने साथ दो गवाह की भी आवशयकता होगी। भारत के बहुत से राज्यों में रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया ऑनलाइन है। प्रलेख के रजिस्ट्रेशन पूर्ण होने पर पंजीकृत प्रलेख की एक प्रति आपको प्रदान की जाएगी जो आपको प्राप्त करनी चाहिए।
विभिन्न राज्यों की लैंड रजिस्ट्रेशन Websites
State | Website |
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